एक बार एक गांव मै काना नांव को आदमी छो। वो एक दन ऊँकै सासरै चलग्यो। सासरा का, काना बेई खिचड़ी रान्द्‌या। कानो खिचड़ी खार सोयो जद्‌यां खिचड़ी को नांव याद रांखबा बेई खिचड़ी को नांव रटतो-रटतो सोग्यो। वो सुंवांरई उठ्यो जद्‌यां खिचड़ी को नांव तो भूलग्यो अर खाचड़ी को नांव याद रैग्यो।
    कानो ऊँकै घरां आयो जद खाचड़ी-खाचड़ी बोलतो आर्यो छो। गेला मै एक पाळती खेत मै चड़्यां उडार्यो छो। वो काना की वाज सुणर काना नै पकड़ लियो अर खियो कै म्ह तो खेत मै सूं चड़्या नै उडार्यो छूँ अर तू खाचड़ी-खाचड़ी खैर्यो छै। पाळती काना नै खियो कै म्ह बताऊँ जियां बोलतो जा उड चड़ी-उड चड़ी।
    कानो थोड़ी दूर आगै आयो जद उड चड़ी-उड चड़ी बोलतो गियो। आगै एक सकारी काना की वाज न सुणर ऊँनै पकड़ लियो अर खियो कै म्ह तो चड़्यां नै पकड़बा की कर्यो छूँ अर तू चड़्यां नै उडार्यो छै। पाछै कानो खिचड़ी को नांव लेबो ई छोड दियो।
    सीख :- रटबा की बजाई समजबो चोखो छै।