एक पांवणा नांव को आदमी छो। वो एक पाळती कै घरां चलग्यो। पाळती ऊँनै पूच्यो कै थारो कांई नांव छै। वो बोल्यो, म्हारो नांव पांवणो छै। पाळती की लुगाई को नांव तारां छो अर ऊँकी छोरी को नांव रामा छो। पाळती थोड़ी बार पाछै खेत मै हळ बाहबा चलग्यो। पाळती रामा को बाळपणा मैईं ब्याव कर दियो छो। पैल्यां लुगायां पांवणा सूं बोलै भी कोन छी, तारा सोची कै, यो तो आपणी छोरी को ईं पांवणो छै। जिसूं तारां बच्यार लगाई कै, पांवणो तो छोरी नै लेबा आग्यो। तारां तो छोरी नै निया लत्‍ता पहरार पांवणा कै लैरां खन्दादी अर पाळती की रोटी लेर खेत पै चलगी।
पाळती तारां नै खियो, अतरी मोड़ी कियां आई छै? तारां बोली, छोरी नै पांवणा कै लैरां खन्दार आई छूँ। पाळती खियो, कस्या पांवणा कै लैरां खन्दादी छोरी नै? तारां बोली आपणै घरां आयो छो नै, जिंकै लैरां। पाळती बोल्यो, वो तो कणा कुण छो? ऊँको तो नांव पांवणो छो।
पाळती खेत मैईं सूंज नै छोड दियो अर खेत की मेर पै बन्देड़ा घोड़ा पै बैठर पांवणा कै पाछै गियो पण वो पकड़ मै न आयो। फेर वो एक छोरा नै खियो, यो घोड़ो लेर जा, आगै म्हारी छोरी अर पांवणो मलैला, वानै पकड़लै। वो छोरो घोड़ा नै जोर सूं दोड़ार पांवणा नै पकड़ लियो। पांवणो बोल्यो, मन जाबादै, म्ह घोड़ो कोन लेर जाऊँ। म्हारा पहली ई नरा नोहरा कर्या छा, म्ह जद्‌यांईं लिया तो घोड़ा नै। “वो छोरो सोच्यो कै, है सकै इनै ईं घोड़ा नै देबा कै तोड़ी ईं पांवणा नै पकड़बा बेई खियो है।” छोरो बोल्यो, पांवणा घोड़ो तो तोनै लेर ई जाणो पड़ैलो। पांवणो खियो, थे न मानै तो, ले जाऊँलो घोड़ा नै। पांवणो घोड़ा पै रामा नै बठाणर लेर चलग्यो।
थोड़ी बार पाछै छोरो अर पाळती एक ठोर मल्या तो पाळती खियो, घोड़ो कोड़ै छै। छोरो बोल्यो, घोड़ो तो पांवणा नै दियायो। पाळती खियो, म्ह तो पांवणा नै रोकबा बेई खियो छो अर तू तो म्हारा घोड़ा नै भी दियायो। पांवणा कै तो चोखो काम हैग्यो।
सीख :- कद्‌यां भी पराया आदमी पै बसवास न करणो चाईजे।