ढूँढाड़ी बाताँ

चमत्कारी मून्दड़ी

एक बार एक गाँव मै एक सोपाल नाँव को आदमी रै छो। वो एक नन्दी मै सूँ मच्‍छ्याँ नखाळर अपणा बाळकाँ नै पाळै छो। एक दन वो नन्दी मै मच्‍छ्याँ नखाळबा गियो तो जाळ मै मच्‍छ्याँ तो आई कोनै अर एक कापचो जाळ मै उळजर आग्यो। सोपाल ऊँ कापचा नै नन्दी की डाई प

एक ऊँट अर एक स्याळ

एक बार एक ऊँट अर एक स्याळ दोनी बायेला छा। एक दन वै दोनी एक खेत मै काकड़ी खरबूजा खाबा चलग्या। स्याळ तो बेगो-सोक धापग्यो अर वो ऊँट नै खियो कै, बायेला मन तो हूँकबा की मनमै आरी छै। ऊँट बोल्यो, बायेला डटजा म्ह हालताणी धाप्यो कोनै, थोड़ी देर पाछै हूँक लिज्यो। पण स्याळ तो हूँक

एक टोप्याँ बेचबाळो अर बान्दरा

    एक बार एक टोप्याँ बेचबाळो छो। वो गाँव-गाँव जार टोप्याँ बेचै छो। एक दन घणी गरमी छी। जिसूँ वो एक रूँखड़ा कै तळै साँस खाबा लागग्यो अर ऊनै नन्दरा आगी। रूँखड़ा पै घणा सारा बान्दरा छा। वै बान्दरा रूँखड़ा पै सूँ तळै उतर्र ऊँ टोप्याँ बेचबाळा की गाँठड़ी खोलर ऊँमै सूँ टोप्याँ

संगठन मै रहबो चोखो छै।

एक बार एक पाळती छो। ऊँकै च्यार‌ छोरा‌ छा। वै नतकई लड़ता रह छा। वाँको बाप वानै घणो समझावै छो, पण वै लड़ता कोन मानै छा। थोड़ा दना पाछै पाळती बेमार पड़ग्यो। वो ऊँका छोराँ नै बलायो अर वानै एक लकड़्याँ को भारो दियो। वो पाळती वानै वो भारो तोड़बा बेई खियो। कोई भी ऊँ भारा नै तो

एक झूंटो गुवाळ्यो

एक बार एक लळ्ड्याँ चराबाळो गुवाळ्यो छो। वो नतकई वाँ लळ्ड्याँ नै चराबा माळ मै जावै छो। उण्डै साँकड़ै ईं खेताँ मै आदमी काम कर्या छा। एक दन वो गुवाळ्यो मजाक करबा की सोच्यो अर वो जोर-जोर सूँ बळ्ळाबा लागग्यो, “ल्याळी आग्यो, ल्याळी आग्यो, बचावो-बचावो।” गाँव का आदमी भाग्या-भाग

एक लोभी गण्डकड़ो

एक बार एक गण्डक छो। वो घणो भूखो छो। वो खाणा कै ताणी अण्डि-उण्डी भहरार्यो छो। भहराताँ-भहराताँ ऊनै एक रोटी को टूकड़ो मल्यो। वो ऊँ टूकड़ा नै लेर एक नन्दी की कन्दार कै सार्रै-सार्रै जार्यो छो। गण्डक नन्दी का पाणी ओड़ी देख्यो तो, पाणी मै ऊँनै ऊँकी छाया दीखी। लालची गण्डकड़ो प

एक लूँगती अर एक मुरगो

एक बार एक मुरगो नीमड़ी पै बैठ्‍यो छो। उण्डै एक लूँगती आई अर मुरगा नै बोली, अरै मुरगा तू रूँखड़ा पै कियाँ बैठ्‍यो छै। आज तो सब जन्दावराँ मै समझोतो हैग्यो। अब कोई भी एक-दूसरा नै कोन खावै। मुरगो ऊँचो हैर देख्यो तो, ऊँनै एक गण्डकड़ो आतो दिख्यो। लूँगती बोली, अरै तू काँई देखर

एक कागलो अर एक लूँगती

एक बार एक लूँगती छी। वा घणी भूखी छी। वा खाणा कै ताणी अण्डि-उण्डी भटकरी छी। भटकताँ-भटकताँ वा एक बाग मै चलगी। बाग मै एक रूँखड़ा पै एक कागलो बैठ्‍यो छो। कागला की चूँच मै एक रोटी छी। लूँगती रोटी नै देखताँई ऊँका मूण्डा मै पाणी आग्यो। वा ऊँ रोटी नै खाबो चाई। लूँगती एक बच्यार

साँच की जीत

एक बार एक राजो छो। वो गाँव कै बीच मै कोई कै दंगो हैज्या छो, तो ऊँको न्याई करै छो। एक दन दो लुगायाँ सुगना अर मंगळी एक बाळक पै लड़ पड़ी। सुगना तो खहछी म्हारो छै अर मंगळी खहछी म्हारो छै। दोनी लुगायाँ घाडी लड़ी अर वाँकी पार नै पड़ी तो वै दोनी ऊँ राजा कन चलगी। राजो दोनी लुगा

रुई की चोरी

एक बार अकबर रुई को भण्डारो भर लियो। वो भेळी करेड़ी रुई नै सूत बाणाबा बेई गाँव का कारीगराँ नै लगा दियो। सगळा कारीगर नतकई रुई को सूत बणार बादस्या नै देदे छा। बादस्यो बदला मै वानै पीसा देदे छो, जिसूँ कारीगराँ को गुजारो हैज्या छो। अकबर कै सूत बणाबा सूँ घाटो हैग्यो। अकबर मन