ढूँढाड़ी बाताँ

बीरबल को चातरकपणो

एक बार की बात छै, अकबर का दरबार मै नरा सारा दरबारी छा। ज्याँमै सूँ अकबर, बीरबल नै घणो चावै छो। अकबर का दरबारी बीरबल नै देखर बळै छा। एक दन सगळा दरबारी बोल-बतळार बीरबल नै नखाळबा को बच्यार कर लिया। बीरबल घणो चातरक छो, ऊँकै आगै सब दरबार्यां नै हार मानणी पड़ै छी। एक दन अकबर

बीरबल की खिचड़ी

एक बार जाडा का दना मै अकबर सगळा गांव का लोगां नै भेळा कर लियो। गांव कै सांकड़ै एक तळाव छो। अकबर ऊँ तळाव बेई खियो, जे आदमी ईं तळाव मै रात भर उबो रैज्या, ऊँनै एक लाख रफ्यां की इनाम मल ज्याली। जाडा का दना मै सीळा पाणी मै उबो रहबा की बसकी कुण की छै?

धोखाबाज लुगाई

एक बार एक गांव मै एक लुगाई छी। वा एक दन मादू नांव का आदमी नै पकड़र अकबर बादस्या कन लेगी अर बोली, बादस्याजी यो आदमी म्हारो सगळो गहणो खोल लियो। अकबर, मादू नै खियो, ईं लुगाई को गहणो कोड़ै छै?

काम सूं मीठो फळ मलै छै

एक बार राजा का दरबार मै तीन आदमी हीरा-पन्‍ना बेचबाळा आग्या। वै राजा नै हाथ जोड़र बोल्या, राजाजी म्हे तीनू थांकी नगरी मै हीरा-पन्‍ना बेचबा आर्या छा, गेला मै म्हानै डाकू मार-कूटर सगळा हीरा-पन्‍ना नै कुसका लिया, जिसूं म्हांकन रोटी खाबा बेई पीसा कोनै। राजो तीना नै एक-एक बोर

नीलो मोती

एक बार एक राजा कै दो राण्यां छी। दोनी राण्यां नतकई राजा सूं राड़ करै छी अर पूचै छी, कै थे म्हां दोन्यां मै सूं जादा परेम कुण सूं करो छो?

अकल बडी कै भैंस

एक बार एक राजो जंगळ मै सकार करबा चलग्यो। वो सकार कै ताणी जंगळ मै घणी दूरां तक चलग्यो पण ऊँनै एक भी सकार कोन मल्यो। राजो जंगळ मै सूं उल्टो आयो जद्‌यां गेलो डूलग्यो। वो डूलतो-डूलतो आगै आयो, तो ऊँनै जोर की तसाई लाग्याई। गेला मै दो गुवाळ्या छेळ्यां चरार्या छा। राजो, गुवाळ्य

सत्यवादी राजकुमार

एक गांव मै एक माड़साब छो। ऊँको नांव सुकदेव छो। ऊँकै करमां नांव की एक छोरी छी। माड़साब करमां नै बडिया पडायो-लखायो। पडाई-लखाई पूरी हियां पाछै करमां ब्याववाळी हैगी। अब माड़साब कै करमां का ब्याव की चन्ता लागज्या छै। माड़साब कन पीसां की कोई कमी कोन छी। वो माड़साब छोरी कै तोड

बावळ्यो परिवार

पराणा जमाना की बात छै। एक गांव मै एक घासी नांव को आदमी छो। घासी की लुगाई को नांव केसर छो। घासी सारै दन खेतां मै काम करै छो अर केसर घरां ढाण्डा-ढोरां एरै-सेरै छी। घासी नतकई खेतां पै सूं मोड़ो घरां आवै छो। ऊँ गांव मै एक दन स्याम की टेम नरा जोर को करस आ जावै छै। जन्दाड़ै क

एक चड़ो अर एक चड़ी

एक बार एक चड़ो अर एक चड़ी छा। एक दन दोनी बतळाया कै आपां खिचड़ी बणावां। चड़ो लियायो चावळ अर चड़ी लियाई मूंग, दोनी खिचड़ी बणा लिया। चड़ी पाणी लेबा चलगी अर चड़ो पाछै सूं सगळी खिचड़ी नै खाग्यो। थोड़ी बार पाछै चड़ी पाणी लेर आई। चड़ी, चड़ा नै बोली, खिचड़ी नै कुण खाग्यो। चड़ो

खिचड़ी को नांव भूलग्यो

एक बार एक गांव मै काना नांव को आदमी छो। वो एक दन ऊँकै सासरै चलग्यो। सासरा का, काना बेई खिचड़ी रान्द्‌या। कानो खिचड़ी खार सोयो जद्‌यां खिचड़ी को नांव याद रांखबा बेई खिचड़ी को नांव रटतो-रटतो सोग्यो। वो सुंवांरई उठ्यो जद्‌यां खिचड़ी को नांव तो भूलग्यो अर खाचड़ी को नांव याद